संपादकीय

लौकी -भात के साथ छठ महापर्व शुरू ,रायगढ़ में भी छठ की रहती है धूम


रायगढ़ / लौकी -भात खाने के साथ ही देश भर में 5 नवम्बर को छठ के महापर्व की शुरुआत हो गई है। बिहार और उत्तर प्रदेश में छठ के इस व्रत को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन यह महापर्व पूरे देश भर में मनाया जाने लगा है चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।
छठ के इस व्रत में भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा की जाती है। छठ को सुहाग की रक्षा के लिए भी महिलाएं रहती हैं। इस व्रत में महिलाएं पूजा के समय नाक से लेकर मांग तक का लंबा सा सिंदूर लगाती हैं। नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस व्रत में खरना और सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही ये व्रत खत्म होता है। छठ ही एक ऐसा पर्व है जिसमें ढलते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है।
छठ का पर्व आस्था का पर्व है, जिसमें सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना की जाती है। छठ में सबसे पहले नहाय खाय, फिर खरना और इसके बाद तीसरे दिन ढलते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देव के इस व्रत की काफी मान्यता है।


रायगढ़ में उत्तरप्रदेश और बिहार से आये हुए लोगों ने छठ पूजा मनाना शुरू किया था पर अब इसे सर्व समाज के लोगों ने भी मनाना शुरू कर दिया है।रायगढ़ में छठ पूजा जूटमिल लेबर कालोनी स्थित केलो तट से होती हुई अतरमुडा तालाब और जगदंबा आश्रम स्थित घाट से होकर केलो बिहार स्थित सर्वसुविधायुक्त छठ घाट ,जयसिंग तालाब और अन्य तालाब के अलावा केलो के अन्य घाटों तक पहुंची और इन स्थानों पर छठ पूजा मनाने वालों की भारी भीड़ देखी जा सकती है तक पहुंची ।छठ पूजा आज रायगढ़ में व्यापक स्तर पर मनाया जाने लगा है। जिंदल के आने के बाद किरोड़ीमल नगर ,भगवानपुर तालाब में भी छठ पूजा की धूम देखते ही बनती है।
छठ पूजा 3 दिवसीय सूर्य उपासना का पर्व है।छठ पूजा की तिथि:छठ पूजा का पहला दिन यानी नहाय खाय 5 नवंबर (मंगलवार) है। दूसरा दिन 6 नवंबर (बुधवार) को खरना है। तीसरे दिन 7 नवंबर को संध्याकालीन अर्घ्य है. चौथे दिन 8 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन हो जाएगा। प्रातःकालीन अर्ध्य के बाद छठ व्रती घर आकर छठ पूजन सामग्री का घर में पूजा कर पारण करती हैं.।
नेपाल की तराई ,बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ यह पर्व आज पूरे देश में मनाया जाता है ।बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जहां जहां गए वो अपनी परंपरा ,संस्कृति ,खानपान , और लोकगीतों को भी ले गए ।
अंग्रेज जब गिरमिटिया मजदूर बनाकर पूर्वी उत्तरप्रदेश ,बिहार से वेस्ट इंडीज ,सूरीनाम ,फिजी ,मॉरीशस ,दक्षिण अफ्रीका एवं अन्य देशों में ले गए तो उन्होंने अपनी संस्कृति औए समाज की परंपरा को नहीं छोड़ा जिसका नतीजा है कि दो सौ साल बाद भी इन देशों में भोजपुरी संस्कृति ,परम्परा और उसके तीज त्योहार ,लोकगीत आज भी फल फूल रहे हैं।

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