बेतालवाणीसंपादकीय

एक बार सोचिएगा जरूर

कभी आपने यह सोचा है कि आपकी दीवाली मनाने के लिए जो लोग दीवाली की रात तक आपके लिए काम करते हैं , वो दीवाली कैसे मनाते होंगे ?यहीं पर मानवीय संवेदनाओं की परख होती है कि आप कितने संवेदनशील हैं ,आखिर वो भी तो आपसे जुड़े हुए होते है और उनकी भी कुछ आस आपसे जुड़ी होती है ।ये कुछ कहते नहीं हैं बोलते नहीं हैं ,मांगते नहीं है ,आपके लिए काम करते जाते हैं ,आपका जो वैभव ऐश्वर्य ,सम्पन्नता दिखाई देती है ना उनके पीछे इनका भी खून और पसीना होता है ,।बस आप यही उनसे कहते हैं कि दीवाली तक सारा काम पूरा हो जाना चाहिए ।भला आप सोचे भी क्यों कि उनकी दीवाली कैसे मना करती होगी ?आप उनके काम के बदले पैसे जो देते हैं ।क्या सिर्फ मेहनताना दे देने से या बहुत दिल पसीजा तो मिठाई का एक डिब्बा और कुछ सिक्के दे देने से आपका कर्तव्य पूरा हो जाता है ।सोचिएगा जरूर ।(अनिल पाण्डेय)

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