नेता जब फ्रंट में आकर लीड करता है तभी उसकी योग्यता प्रगट होती है और वह हारी हुई बाजी को अपने दल के अनुकूल बना लेता है ।
यह विडम्बना का विषय ही है कि गत विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों कांग्रेस को मिली शर्मनाक पराजय के बाद रायगढ़ में कांग्रेस नेतृत्व विहीन हो गई है इसका परिचय गत लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था ।विधानसभा चुनाव को हुए एक साल का समय बीत चुका है इसके बावजूद रायगढ़ में कांग्रेस में ऐसा कोई नया नेतृत्व नहीं उभरा है जोकि नगरनिगम चुनाव की कमान सम्हाल सके ,लकवाग्रस्त कांग्रेस में नई ऊर्जा ,जोश ,उमंग और उत्साह पैदा करके कांग्रेस को भाजपा से दो दो हाथ करने के लिए तैयार कर सके ।
रायगढ़ में पिछले नगरीय निकाय का चुनाव कांग्रेस ने तत्कालीन विधायक प्रकाश नायक के नेतृत्व में लड़ा था और कांग्रेस 24 वार्डों में चुनाव जीतने में सफल रही थी इस तरह उसके 24 पार्षद निर्वाचित हुए थे बाद में दो निर्दलीय पार्षद कांग्रेस में शामिल हो गए थे जिसके बलबूते पर नगर निगम में कांग्रेस का महापौर निर्वाचित हुआ था ।इस बार प्रदेश में भाजपा की सरकार है रायगढ़ में भाजपा का विधायक है और महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के जरिये होना है ।
पिछले नगर निगम के चुनाव में रायगढ़ के तत्कालीन विधायक प्रकाश नायक न सामने आकर कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए नाम वापसी के अंतिम दिन कांग्रेस के सभी बागी उम्मीदवारों का नामांकन वापस कराने में सफलता हासिल कर ली ।जोकि नगर निगम रायगढ़ के चुनाव में कांग्रेस के लिए एक शुभ संकेत संकेत साबित हुआ था। उंन्होने
पूरी चुनावी कमान अपने हाथों में रखते है और चुनावी संचालन का नियंत्रण खुद करते हुए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बांधकर चुनावी रणक्षेत्र में उतारा था लेकिन इस बार कांग्रेस नेतृत्व विहीन है और उसके पास जो भी हथियार हैं वो जंग खाये हुए हैं।
दूसरी तरफ भाजपा की बात करें तो प्रदेश में उसकी सरकार है और रायगढ़ में भाजपा का विधायक एवं वित्तमंत्री ओपी चौधरी के रूप में प्रभावकारी नेतृत्व है जोकि खुद अपना चुनाव 64 हजार वोटों से जीते हैं जिसके कारण भाजपा का हौसला नगरीय निकाय के चुनाव को लेकर सातवेंआसमान पर है ।
नगरीय निकाय के चुनाव में व्यक्तिगत छवि और चेहरे का महत्वपूर्ण योगदान होता है शायद इसी के कारण कांग्रेस वार्ड मेम्बरी का चुनाव तो अपने उम्मीदवारों के दम और बलबूते पर लड़ेगी लेकिन महापौर का चुनाव लड़ने के लिए नेतृत्व की जरूरत पड़ेगी जिसका फिलहाल कांग्रेस के पास अभाव है ऐसी स्थिति में रायगढ़ में कांग्रेस के सभी खेमों को गुटों को अपने आपसी मतभेद भुलाकर महापौर के लिए सर्वसम्मत प्रत्याशी को चुनाव में उतारकर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने के अलावा और कोई दूसरा चारा दिखाई नहीं देता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस ऐसा कर पायेगी ?
(अनिल पाण्डेय)