संपादकीय

रईसी हो तो झक्कड़ साव जैसी हो

बनारस अपने ही रस ,उमंग ,मस्ती ,उल्लास , संस्कृति में डूबी हुई वो आदि नगरी है जो आदि काल से ही पूरे विश्व में प्रसिद्ध है इसलिए बनारस की विशेषताओं ,प्रसिद्धियों ,प्राचीनता ,पौराणिकता के बारे में कोई भूमिका ना लिखते हुए इस नगरी की रहीसी और रईसों के किस्सों के बारे में आते हुए सीधे झक्कड़ साव पर आ रहा हूँ जिनके कई किस्से बनारस में कहे जाते हैं और उनके वंशज आज भी बनारस में मौजूद हैं जो ठाठ की जिंदगी बसर कर रहें हैं। बनारस में ना जाने कितने रहीस हुए और हैं उनकी थाह लगाना काफी मुश्किल हैं ।बीसवीं सदी में एक ऐसे ही रईस झक्कड़ साव हुए थे ,इनका मूल नाम कुछ और था ,इनकी अंग्रेजी और शानदार सूट के सामने अंग्रेज भी लजाते थे । इनके पूर्वजों ने व्यापार के जरिये अथाह सम्पत्ति कमाई थी ,इसी रईसी की सनक और झक के कारण ये दोनों हाथों से धन लुटाया करते थे जिसके कारण इनका नाम झक्कड़ साव पड़ गया था ।बतानेवाले बताते हुए कहते हैं कि झक्कड़ साव अपनी हवेली में खिड़की खोल कर ऊपर बैठ जाया करते थे और जो उन्हें गली से गुजरता हुआ दिखाई देता था उसके ऊपर पान की पीक की पिचकारी छोड़ दिया करते थे ।जिसके ऊपर पान की पीक पड़ने के कारण उसके कपड़े बदरंग हो जाने के कारण वह झक्कड़ के ऊपर गालियों की बौछार करता हुआ पहुँचता तो गालियाँ सुनकर झक्कड़ साव प्रसन्न हो जाते थे और उसे नए कपड़े और अशर्फी देकर सम्मान सहित विदा किया करते थे ।बताने वाले झक्कड़ साव का एक और मशहूर किस्सा बताते हुए कहते हैं कि एक बार झक्कड़ साव के मन में यह बात बैठ गईं कि उनके घर और खजाने में रखी हुई अशर्फियाँ रखी हुई गीली हो गई हैं इसलिए उन्हें सुखाया जाए ।उन्होंने फ़ौरन सभी नौकरोँ सेवकों को हुक्म दिया कि सभी अशर्फियों को छत में ले जाकर सुखाया जाए ।अब अशर्फियाँ इतनी थी कि उन्हें गिनने में काफी समय लगता तो उन्होंने कहा कि तराजू में तौलकर ले जाकर सुखा दो। शाम को जब अशर्फियों को तौलकर वापस रखा जाने लगा तो उसका वजन कम नहीं हुआ ,क्योंकि नौकर उनके काफी ईमानदार थे ।अशर्फियों का वजन कम ना होने से झक्कड़ साव बिगड़ गए और नौकरों को डांट पिलाते हुए कहा कि तुम लोग काम चोर हो एक काम भी ठीक से नहीं कर सकते ।यह सिलसिला दो तीन दिनों तक चलता रहा अशर्फियाँ सुखाई जाती रहीं ,वापस रखी जाती रही है पर वजन कम नहीं हुआ ।इससे परेशान होकर नौकरोँ ने भी झक्कड़ साव के इसके पीछे का मन्तव्य समझते हुए कुछ अशर्फियाँ अपने पास रख ली और सुखाने के बाद रखने के लिए फिर से उनका तौल होने पर जब वजन कम निकला तो झक्कड़ साव खुश होते हुए नौकरों से कहा कि आज तुम लोगों ने ठीक से काम किया है ,तो ऐसी थी झक्कड़ साव की रईसी ।उनके रईसी के और भी किस्से हैं। झक्कड़ साव ब्रिज खेलने और भांग छानने के भी शौकीन थे ।उन्होंने अपनी वसीयत में कहा था कि उनकी चिता पर ताश की गड्डियां और दिव्य रूप से तैयार भांग भी रखी जाए ।उन्होंने कहा था कि उनकी शवयात्रा में शामिल जो लोग ब्रिज खेलना जानते हों वो उनकी चिता जलने तक ब्रिज खेलते रहें ।उन्होंने कहा था कि उनकी तेरहवीं पर ब्राह्मण भोज में उन्ही ब्राह्मणों को बुलाया जाए जो भांग पीते हों ,उन्हें इतनी भांग पिलाई जाए कि वो उमंग में आ जाएं और उन्हें फिर नहलाने के बाद भोजन कराया जाए।

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