संपादकीय

नृत्य ,संगीत ,संस्कृति की राजा चक्रधर की नगरी ,प्रदूषण और जाम की नगरी कैसे बन गई ?जहां हवा की आह सुनाई देती है तो सड़कें वेदना से कराहती है ,सचमुच कितना बदल गया रायगढ़ (1)

रायगढ़ । न जाने कहाँ छिप गई है मेरे शहर की बौद्धिक विरासत ,न जाने कहाँ खो गए हैं वो बगावती सुर जो पहाड़ों का भी सीना चीरने का दम भरते थे । ना जाने किसकी नजर लग गई रायगढ़ को?कभी वो दौर था कि सत्तीगुड़ी चौक के किसी चाय पकौड़ी की दुकान से मिर्ची की चटनी से भी तीखी और बेबाक टिप्पणियां गूंजती थी जो शहर की राजनीति का सीना छलनी कर देती थी ,गांजा चौक ,राम गुड़ी पारा से उठने वाली बौध्दिक ,क्रांतिकारी आवाज पूरे शहर में आग के गोले की तरह फैल जाती थी ,वो दौर भी अब दिखाई नहीं देता जब सुभाष चौक और गद्दी चौक से इस शहर की राजनीति को नियंत्रित करने की शतरंज खेली जाती थी । तो दानीपारा की अदा ही थी तो मंदिर चौक और चक्रधर नगर का अपना ही अलबेला अंदाज थ।इस शहर में अब वो वेताल भी नहीं रहे जो घूम घूम कर जिसके मुंह पर जो जैसा है उसको वैसा बोलने का साहस हौसला रखते थे ,उन्हें देखते ही अच्छे अच्छों की पूंछ सरक जाया करती थी और सफेदपोश उन्हें देखकर दूर से ही सलाम कर निकल जाने में अपनी भलाई समझा करते थे । एक वो भी दौर था जब रायगढ़ की पहचान पूरे भारत में साहित्य के क्षेत्रः में ,छायावाद के प्रवर्तक कवि ,पद्मश्री पँ मुकुटधर पाण्डेय ,साहित्यकार और पुरातत्ववेत्ता पँ लोचन प्रसाद पाण्डेय ,कला एवं संगीत के क्षेत्रः में राजा चक्रधर सिंह ,कोसा वस्त्र निर्माण ,एवं तत्कालीन मध्यप्रदेश की एक मात्र जूटमिल से हुआ करती थी और यह पहचान आज भी ,अपनी जगह कायम है ।सिंघनपुर ,कबरा पहाड़ ,उषाकोठी करमागढ़ के शैल चित्रों के लिए रायगढ़ की पहचान पूरे विश्व में है। इस सबके बगैर रायगढ़ की कहानी अधूरी ही है।1990 के रायगढ़ के अंधाधुन्द औद्योगिकीकरण के कारण रायगढ़ का द्रुतगति से आर्थिक क्षेत्र में भी विकास हुआ ।इसी के कारण यहां की जनसंख्या तेजी से बढ़ी ।इस बढ़ती हुई आबादी का बोझ ढोते ढोते हुए रायगढ़ की सड़कों पर भीड़ बढ़ने लगी ,जिसके कारण शहर के अंदर यातायात की समस्या सुरसा की तरह मुंह बढ़ाने लगी ,इसे दूर करने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण भी किया गया परन्तु मध्य शहर को इससे छुटकारा नहीं मिल पाया ।भले ही रायगढ़ का कितना भी विकास हुआ हो लेकिन इस विकास की विभीषिका प्रदूषण के रूप में आज रायगढ़ भुगत रहा है ,जिसके कारण अपने प्रदूषण के लिए रायगढ़ पूरे भारत में प्रसिध्द हो चुका है । अब वायु प्रदूषण की स्थिति को बताने के लिए डिस्प्ले बोर्ड भी लगाया गया था पर इस डिस्प्ले बोर्ड से पर्यावरण विभाग कितना ,सजग ,चैतन्य हुआ है ये तो वही जानता होगा ।इससे इतरइन सब बातों, तथ्यों ,बहस-मुहासिबों के उपरांत भी ,रायगढ़ के “रायगढ़िया -अंदाज “का कोई तोड़ नहीं है। रायगढ़ अपने ही रौ में आगे बढ़ता रहेगा और हर हाल में जीता रहेगा।खैर इसे पीछे छोड़ हम आगे बढ़ते हैं ।हमारा रायगढ़ एक मनमौजी शहर है इसके जीने का ढंग निराला है जो अपनी ही मस्ती में चला और जिया करता है ।1990 के बाद से रायगढ़ की जीवनशैली में कुछ बदलाव हुआ है पर इतना भी नहीं बदला है कि रायगढ़ का रायगढ़िया पन गायब हो गया हो ।आज भी आप पुरानी बस्ती ,चांदनी चौक ,हटरी चौक ,सत्तीगड़ी चौक ,दरोगा पारा कोष्टापारा,स्टेशन चौक ,मंदिर चौक ,बैकुंठपुर ,नयागंज ,इतवारी बाजार चले जाइये रायगढ़ का रायगढ़िया पन खिलखिलाते हुए जीवंत नजर आ जायेगा ।पीढियां जरूर बदल गई हैं ,नई पीढ़ी आ गई है पर पुरानी पीढ़ी के खूंटे ढूंढने पर जरूर अपने पुराने अंदाज में दिखाई देंगे ।इन्हें देखकर लगता है और महसूस होता है कि अभी कुछ भी तो नही बदला है।इस शहर की तासीर और फितरत राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है तो किन्नर को भी महापौर बना देती है ।

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