संपादकीय

‘मुफ़लिस बादशाह’ मुमताज भारती उर्फ पापा,लिखा करते थे कॉलम “आनन्द दुखदाई”

रायगढ़ 3 जनवरी । रायगढ़ की पत्रकारिता की जब भी चर्चा होगी वो मुमताज भारती उर्फ पापा की चर्चा के बगैर अधूरी रहेगी । पापा उपनाम से प्रसिद्ध मुमताज भारती द्वारा आनन्द दुखदाई के नाम से लिखा जाने वाला यह कॉलम 80 के दशक में पाठकों के बीच में काफी लोकप्रिय हुआ था।
,1982 के आस पास मुमताज भारती उर्फ पापा ने आनंद दुखदायी के नाम से रायगढ़ संदेश में साप्ताहिक कालम लिखना शुरू किया था जो बहुत प्रसिद्ध हुआ रायगढ़ संदेश में गुरुदेव जी के संपादकीय के बाद इस कालम की खूब चर्चा होती थी।पापा के अनुसार इस कालम का नाम आनंद दुखदायी इसलिए रखा था कि इस देश की जनता ही ऐसी है जो दुख में भी आनंद खोज लेती है और हमेशा अपने पराजय का उत्सव बड़े आनंद के साथ मनाती है।
हर्ष सिंह बताते हैं कि पापा जिन्हें मुमताज भारती के नाम से लोग जानते हैं वो पुराने लोगों की नज़र में एक कम्युनिस्ट मजदूर नेता रहे हैं। उनके राजनीतिक जीवन पर अलग से लिखा जा सकता है पर उनके सांस्कृतिक कला ,लेखन के जीवन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। पापा द्वारा लिखित कविताओं की बात करें तो वे मुक्तिबोध की परंपरा के कवि लगते हैं – राजा ललित सिंह ,और बसंत पर लिखी उनकी कविता बार- बार सुनी जाती है।बयार प्रेस में उनके बनाए कार्टून इतने मारक होते थे कि लोग उनके लिए जहन्नुम जाने की बात सोचते।उनकी पक्षधरता हमेशा शोषित ,गरीब कमजोर मजदूरों और किसानों के प्रति होती।वो गद्य भी लिखते तो उसके हर वाक्य अपने साथ सार्थक और वास्तविक अर्थ लिए होते।वो एक दार्शनिक, साहित्य कार ,रंग कर्मी, चित्रकार और सूट सिलने में दक्ष कलाकार हैं। उन्होंने पुरातत्व पर लिखा , गुरुनानक और अध्यात्म पर भी लिखा।उनकी आवाज में इतना प्रभाव है कि प्रसिद्ध नाटक एक और द्रोणाचार्य में उन्होंने नाटक के दौरान अपनी आवाज मंचके पार्श्व से दिया।भाषा,कला, संस्कृति , साहित्य के वो डिजायनर है। कोई बात कैसे रखी जाए उसमें वो प्रतिभा वान है।

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