लाला जी ,ओ लाला जी
नटवर मिडिलस्कुल में रिसेस की घण्टी बजते ही हम क्लासरूम से बाहर निकलकर मैदान में आ जाते थे ।बाहर एक हाफ पैंट ,हाफ शर्ट पहना हुआ लंबा आदमी टोकरी में अपनी दुकान लगाए हुए ,लाला जी ओ लाला जी की आवाज लगाता हुआ नजर आता था जो उबले आलू और उबले हुए चने की चाट बेचा करता था ।इस शख्श का नाम विजय था ।विजय सरई के पत्ते में हल्दी में रंगे पीले रंग के उबले हुए आलू को अपने चाकू से पतला -पतला ,गोल -गोल करीने से काटकर रख दिया करता था ,फिर उसमें उबले हुए चने को डालने के बाद उसपर अनोखे स्वाद वाला कूटा हुआ मसाला ,नमक ,मिर्च छिड़ककर ,उसे मिलाकर फिर एक बांस की सीक लगाकर खानेवाले को परोस दिया करता था ।मेरे सहित नटवर स्कूल रायगढ़ में पढ़ने वाले बहुत से छात्रों ने विजय के आलू का स्वाद जरूर लिया होगा ।
ये तो बात हुई विजय कि लेकिन अब बात करते हैं गोशाला के पास ठेले पर आलू चना की चाट बेचने वाले देवसिंह की इसका भी आलू चना काफी स्वादिष्ट है और दो बजते बजते इसका आकू चना लगभग समाप्त हो जाता है आजकल देवसिंह के स्थान पर उसका बेटा सूरज आलू चने के स्वाद के साथ इसका ठेला सम्हाल रहा है।