उपभोक्ता से उत्पाद बनता मनुष्य और डिजिटल दुनिया:हर्ष सिंह
नट-बोल्ट पाना पेचकस ,स्पिरग,मशीनों को टाइट करने और एक दूसरे को जोड़ने के लिए है। पहले कोई एकाध सनकी कलाकार उसको मानवीय आकृति देता था और वो आकर्षक भी लगता था । अब शोसल मीडिया में नट-बोल्ट से बने मानवीय आकृतियों की बाढ़ सी आ गई है।यही है डिजिटल दुनिया की ताकत जो आदमी को उपभोक्ता की बजाय उत्पाद में बदल रही है।आज आप देश के किसी भी कोने में जाईए एक ही तरह शादी के कार्यक्रम दिखेंगे।किसी सुल्तान जैसे दाढ़ी बढ़ाये दुल्हा राजा, राजपूत राजाओं की बहनों जैसी दुल्हन, मटके से धुआं निकलता कृत्रिम बादलों में मिथकीय नायक-नायिका ( वर वधू),और वरमाला में के दौरान धार्मिक धून,,तथा फटाक से फूटता कागज की रंग बिरंगी चिंदियों का बवंडर , युरोपीयन स्टाईल के पेय पदार्थ, इस्लामिक तरीके की वेशभूषा और देशी संस्कृति के रीति-रिवाज,,।यह सब क्या उपभोक्ता स्वयं तय कर रहा है बल्कि बाजार की ताकतें एक ही तरह का ट्रेंड बना रही है ।और हम सब इसके शिकार है।इसे ही कल्चरल हायरिकी कह सकते हैं।यदि कारपोरेट हाउस अपने बच्चों की शादी आटो सजा कर करें तो हम सब भी उसकी नकल उसी तरह करेंगे। बाजार की ताकतें बहुत होशियारी से पुरानी परंपरा में नयी चीजें मिला देती है।हम सब अपनी परंपरा के वाहक होने की नाहक खुशियों में शामिल होते हैं। अंततः नकली बादल खत्म हो जाता है, शामियाना उखड़ जाता है , मेहमान लौट जाते हैं , तलवारें म्यानों में वापस चली जाती है और हम जिंदगी की उबड़-खाबड़ सड़कों पर आना पाई के हिसाब में फंस जाते हैं।