भारत में लोक कलाओं ,लोक संस्कृति ,लोक संगीत और लोक गीतों का अहम स्थान तथा भूमिका है और यही किसी क्षेत्र की विशेष पहचान भी बनाती हैं ।छत्तीसगढ़ की इसी तरह एक विशेष पहचान यहां पर होने वाले राउत नाचा से भी बनती है ।
राम हो –राम हो ,पिहरी ,ढपली ,नगाड़े ,गड़वा बाजा की थाप ,और घुंघरू की आवाज सुनकर हम दौड़े चले जाते थे ,यह जान जाते थे कि राउत नाचा नाचने वालों की टोली पारंपरिक वेशभूषा में कौड़ियों की माला पहने हुए ढाल धारण किये हुए आ गई है जो डंडा ऊंचा कर कर के नाचा करते ,कुछ दोहा भी गाया करते थे पर अब पिछले कई वर्षों से यह टोलियां रायगढ़ में दिखाई देती है और न हीउनका ,नृत्य ,संगीत और गीत रायगढ़ की गलियों मेंपहले की तरह गूंजता है ।यह टोलियां पुराने दौर में कभी रायगढ़ के चौक चौराहों पर ,दुकानों के आगे ,घरों के आगे घूम घूमकर अपनी कला का प्रदर्शन कर इनाम लेकर आगे बढ़ जाया करती थी।वैसे रायगढ़ में मड़ई मेला का आयोजन होता आ रहा है।पुराने समय में रावतनाचा का प्रारंभ कार्तिक एकादशी( देवउठनी) में प्रारंभ हो जाता था , रावतों की टोली घर-घर जाकर गोठान में गोबर और धान का लेप लगाते हैं, ताकि गोधन सुरक्षित और स्वस्थ्य रहें, परिवार धन-धान्य से भरा रहे यह आशीर्वाद देते थे ।राउत नाचा में दोहे का विशेष महत्व होता है जोकि सामाजिक आधारों के साथ साथ धार्मिल कथाओं के ऊपर आधारित होते थे।कुछ दोहे निम्नानुसार हैं1.ए पार नदी ओ पार नदी बीच कदम के रुख हो सोन चिरैया अंडा दे हे हेरे के बड़े दुख हो2.अड़गा टूटे बड़गा टूटे, अउ बीच म भूरी गाय हो। उहां ले निकले नन्द कन्हैया, भागे भूत मसान हो।।3.हाट गेंव बाजार गेंव, उँहा ले लाएव लाड़ू रे। एक लाड़ू मार परेव, राम राम साढू रे।।4.चन्दरपुर के चन्द्रहासनी ल सुमरौं, डोंगरगढ़ बमलाई ल। रावणभाठा के बंजारी ल सुमरौं ,रायपुर के महाकाली ल।।5.कागा कोयली दुई झन भईया ,अउ बइठे आमा के डार हो। कोन कागा कोन कोयली, के बोली से पहचान हो।।6.भरे गांव गितकेरा बाबू ,बहुते उपजे बोहार हो। पाइया लागव बंसी वाले के, झोकव मोरो जोहार हो।।7.जै जै सीता राम के भैया, जै जै लक्षमण बलवान हो। जै कपि सुग्रीव के भईया ,कहत चलै हनुमान हो।।8.सोल-सोल कथे रे दाउ, महा नदी के सोल हो।गोपपुर में ग्वालिन नाचे, अउ मथुरा में बाजे ढोल हो।। छत्तीसगढ़ के रायपुर अंचल में राउत नाचा दीवाली से ही शुरू हो जाता है जबकि बिलासपुर सम्भाग में देव उठनी एकादशी से राउत नाचा शुरू होता है और अगले 15 दिनों तक होता रहता है ।
पुराने जमाने में रायगढ़ के चिखली ,पुसौर ,और कोतरा के बाजार में भव्य गहिरा भरा करता था जिसमें राउत नाचा की टोलियां अपनी कला का प्रदर्शन करती थी ,कोतरा में भेड़ा लड़ाई भी हुआ करती थी जोकि दूर दूर तक प्रसिद्ध थी।