खबर रायगढ़ में गुपचुप की
भारत मे उत्तर हो या दक्षिण ,पूरब हो या पश्चिम सभी इलाकों में एक चटकार व्यंजन के रूप में गुपचुप को अगाध लोकप्रियता हासिल है ।इसके फुल्की के अलावा और भी नाम हैं जैसे :-गुपचुप ,गोलगप्पा ,पानीपुरी ,फुचका आदि ।फुल्की के इतिहास में जाते हैं तो पता चलता है कि फुल्की सबसे पहले मगध राज्य अब दक्षिण बिहार में बनी थी और इसका फुल्की नामकरण भी वहीं हुआ था ।
काफी प्रयास के बाद भी मुझे यह तो पता नहीं चल पाया कि हमारे शहर रायगढ़ में सबसे पहले किसने फुल्की का खोमचा या ठेला लगाया था इसका पता तो नहीं चल पाया पर इतना तो तय है कि उत्तर भारत के हरियाणा ,यूपी या बिहार से आये किसी प्रवासी का ही नाम इसमें सामने आएगा।खैर इसे छोड़कर हम आगे बढ़ते हैं
जब मैं प्रायमरी स्कूल में पढ़ा करता था तो मुझे अच्छे से याद है कि जूटमिल की तरफ से दोपहर बाद रामभरोस महराज एक फुल्की का ठेला निकाला करते थे उनकी फुल्की पानी बेहतरीन हुआ करती थी तो फुल्की के अंदर डाले जाने वाला आलू के मिश्रण वाला मसाला काफी उम्दा हुआ करता था ।रात में जब रामभरोस घर लौटा करते थे तो उनकी पूरी फुल्की बिक चुकी होती थी ।
फुल्की और चाट खाने की बात याद आती है तो रामनिवास टाकीज चौक के गीता-भवन के बगल में फुल्की का ठेला लगाने वाला बोधराम भी हम लोगों को मजेदार फुल्की और चाट खिलाया करता था ।
रायगढ़ में बहुत से फुल्की और चाटवाले हैं जहां की फुल्की और चाट का आपने आनन्द उठाया होगा जिसमें श्याम टाकीज चौक पर किसन महाराज की गुपचुप और चाट , तिवारी का गुपचुप ठेला ,लोहिया चौक में सजन की फुल्की और चाट तो 60 के दशक में बैकुंठ पुर से बिशन महाराज के पिता का गुपचुप ठेला ,इनका ठेला नए सदर बाजार रोड में बयार प्रेस जाने वाले रास्ते के सामने लगा करता था । इस सबके बावजूद सवाल अपनी जगह जस का तस हैब कि रायगढ़ में किसने और कब पहले -पहल फुल्की का खोमचा या ठेला लगाकर रायगढ़ वालों को फुल्की खिलाई थी ?
*अनिल पाण्डेय *