एकादशी के लिए रायगढ़ में छाई गन्ने की बहार ,शकरकंद और पानीफल सिंघाड़ा भी पीछे नहीं
रायगढ़ 11 नवम्बर /देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह के लिए रायगढ़ के चौक चौराहों में जहां गन्ना बिछना शुरू हो गया है तो शकरकंद ,सिंघाड़ा (पानी फल )की दुकानें भी ठेलों पर सड़कों के किनारे सज गई है रायगढ़ में जो गन्ना बिकने के लिए आया हुआ है वो पड़ोसी जिले अंबिकापुर ,रायगढ़ के सूपा के ठेगागुड़ी और नन्देली के निकट खैरमूड़ा से आया हुआ है ।अंबिकापुर से जो गन्ना आया है उसे रसाली या बंगला गन्ना बोला जाता है।
एक जमाने में एकादशी के अवसर पर पुसौर ब्लाक के गांवों से किसान बैलगाड़ी में लादकर रायगढ़ में गन्ना लाया करते थे और इनका डेरा इतवारी बाजार में लग जाया करता थे ।ये गन्ने लम्बे ,रसीले और काफी मीठे हुआ करते थे इनका छिलका काफी नरम हुआ करता था जो काफी आसानी से दांतों से उतर जाया करता था ।अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई पुसौर क्षेत्र में अब गन्ने की खेती का रकबा कम हो चुका है और सब्जी की खेती का रकबा बढ़ गया है।आज रायगढ़ में गन्ना 40 से 50 रुपये जोड़ी की दर से बिक रहा था ।कल एकादशी के दिन मांग और उपलब्धता के आधार पर इसकी कीमत का निर्धारण होगा। छत्तीसगढ़ और मिथिला में गन्ने को कुशियार भी बोला जाता है ।
गांधी प्रतिमा चौक और संजय काम्प्लेक्स के बाहर और अंदर लाल -लाल शकरकंद बेचते हुए पानी फल (सिंघाड़ा)बिकता हुआ दिखाई दिया ।एक ठेले पर शकरकंद को सजाए हुए ठेले वाले ने बताया कि आज शकरकंद 50 से 60रुपये किलो बिक रहा है ।उसने बताया कि यह शकरकंद ओड़िसा से आया हुआ है।रायगढ़ जिले के लैलूंगा क्षेत्र में भी शकरकंद की खेती होती है और वहां से भी शकरकंद रायगढ़ आएगा ।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन से शुभ कार्य होना आरम्भ हो जाता है ,शादी विवाह होना शुरू हो जाता है ,इसी दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से हुआ था ।एकदशी के बाद से उत्तरभारत में गन्ने की फसल की कटाई भी शुरू की जाती है और गुड़ बनाना शुरू हो जाता है ।