रायगढ़।छठ का महापर्व सिर्फ आस्था ,प्रकृति की उपासना का ही विषय नहीं है बल्कि इसके पीछे जलाशयों ,जलस्रोतों ,नदियों ,नालों ,तालाबों ,पोखरों ,
कुंडों ,घाटों ,के संवर्द्धन ,संरक्षण , शुद्धिकरण किये जाने ,इनका अस्तित्व बनाये रखने का भी मानव जाति को सन्देश है ।यदि आपने छठ के अवसर पर इन जलस्रोतों ,जलाशयों के किनारे जाकर एक दुख और दर्द तथा जल ही जीवन को महसूस किया है तो इस महापर्व के पीछे छिपे इस महत्त्वपूर्ण सन्देश को ग्रहण करने में सफल हो गए हैं ,क्योंकि जलस्रोत ,जलाशय ,सरोवर हमारी धरोहर हैं जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित तरीके से एक दूसरे को सौंपना है। आइए उगते सूरज के स्वागत के साथ हम इस बात का भी संकल्प लें कि इन धरोहरों को बचाये रखने के यज्ञ में हम भी समिधा डालेंगे।
*रायगढ़ के कुंओं में पानी का संगीत सुनाई नहीं देता **
जलस्रोतों की बात चली है तो हम बात करेंगे रायगढ़ के कुओं की जिनमे कभी अमृत जैसा जल हुआ करता था। नृत्य और संगीत के आयोजन में विशेष रुचि दिखाने वाले सामाजिक संघटन रायगढ़ के मृत पड़ चुके कुएं में फिर से पानी के निर्मल गीत और संगीत का आयोजन कर सकते हैं ? इस साफ ,स्वच्छ ,आवश्यक खनिज युक्त के रुनझुन की वापसी के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना होगा सिर्फ उनकी साफ-सफाई तो करानी होगी ,कुएं का महत्व सिर्फ पानी के कारण ही नहीं है बल्कि धार्मिक महत्त्व भी है ,सूखे पड़े इनार (कुएं)का पूजन करके ,उसमें झांक कर वो पुण्य तो नहीं मिलेगा जो पानी से भरे कुएं से मिलेगा ,वैसे हमारे शहर में कुंआ पाटकर उसपर दुकान बना देने का भी खेल हुआ है ,नदी और तालाब के लिए बड़ी बड़ी बात करने वालों एक बार इन कुंओं में भी झांककर देख आओ वो तुम्हे पुकार रहें हैं ,भले तुमने बोतल और आर ओ का पानी पिया हो पर तुम्हारी ऊपर की पीढ़ी ने इन्ही कुंओं का पानी पिया है ।इसलिए कुंओं के इस ऋण से उऋण होने का तुम्हारा भी कुछ फर्ज बनता है ।इन कुंओं का पानी तुमने यदि पिया होता तो जानते कि इनके पानी के स्वाद के सामने बोतल और आरओ के पानी का स्वाद कितना तुच्छ है ।कोई तेज -तर्रार रिपोर्टर चाहे तो रायगढ़ शहर के कुंओं की दुर्दशा पर एक जबरदस्त स्टोरी लिख सकता है ।हो सकता है कि इससे वो कुंए पटने और दुकान बनने से बच जाए ?
(अनिल पाण्डेय )