रायगढ़ में दीपावली पर सजावट की पुरानी परंपरा लुप्त हो गई ।
रायगढ़ ।बढ़ते ट्रैफिक ,चौड़ी होती सड़कें ,संकरी होती जगह की वजह से दीवाली के अवसर पर घरों ,मकानों एवं दुकानों के सामने की जाने वाली रायगढ़ की वो पुरानी परम्परा लुप्त हो गई जिसमें बल्ली, बाँस गाड़कर ,पटरी या बाँस को आड़ा बांधकर कर उसमें मिट्टी का लोंदा दिया रखने के लिए रख दिया जाता था।इसके द्वार पर केले के पेड़ और गेंदे के फूल सहित पेड़ लगाए जाते थे ,आम् की पत्ती के बंदनवार ,कमल के फूल शोभा बढ़ाने के लिए लगाए जाते थे ।
अंधेरा होने से पहले लकड़ी की पट्टी या बाँस पर रखे मिट्टी के लोंदे के ऊपर मिट्टी का दिया रखकर उसमें तेल भरने और रुई से बनी बत्ती डालने का काम शुरू हो जाया करता था ।जैसे ही अंधेरा छा जाता था वैसे ही इन दियों को जलाना शुरू कर दिया जाता था और इस तरह जलते हुए दियों की कतार अद्भुत दृश्य उत्पन्न किया करते थे ।एक आदमी की ड्यूटी यही रहती थी कि तेल के अभाव में कोई दिया बुझने न् पाए इसलिए वह दियों में लगातार तेल डालता रहता था ।
कहीं कहीं पर पुरानी परंपरा की सजावट दिख जाती है वो भी एक रस्म अदायगी जैसी लगती है ।अब तो घर दुकानों मकानों को रोशनी से झिलमिलाने के लिए ,रोशनी से नहाने के लिए चीनी झालरें लहराते हुए नजरआती हैंइससे निश्चित ही रात में रायगढ़ का रूप अलौकिक ,नयनाभिराम ,आकर्षक जरूर नजर आता है