रायगढ़संपादकीय

बताशा , दीवाली और रायगढ़

रायगढ़ /बताशा को देखकर आपके मुंह में पानी आ गया हो तो मुझे कोई हैरत नहीं होगी परन्तु फोटो में पीले रंग का बताशा देखकर कुछ हैरत जरूर हो रही होगी लेकिन जो लोग बंगाल गए होंगे या वहां पर रहे होंगे उन्हें कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि वहां पर यह पीले रंग वाला बताशा अभी भी बनता है।सफेद रंग का बताशा चीनी से बनता है तो पीले रंग का यह बताशा खजूर के गुड़ से बना हुआ होता है जिसे बंगाल में देवी देवताओं को भी चढ़ाया जाता है।
वर्षों पहले दीवाली के समय रायगढ़ के सभी चौक चौराहों पर ठीक उसी तरह बताशे की भी दुकानें लगा करती थी जिस तरह से आजकल मिठाई की दुकानें लगा करती हैं ।अब बताशों की दुकानों का लगने का चलन कम हो गया है फिर भी कम ही सही लेकिन इसकी दुकान ठेलों पर जरूर लगती है ।बताशे का उपयोग देवी लक्ष्मी की पूजा में उन पर चढ़ाने के लिए किया जाता है ।
रायगढ़ में जो बताशा आजकल बिकता है वो बाहर से आता है क्योंकि अब शायद ही इसे कोई बनाता हो ।
रायगढ़ में बताशा बनाकर बेचे जाने को लेकर मिली जानकारी के अनुसार काफी वर्षों पहले पुरानी हटरी स्थित एक दुकान में इसे बनाकर बेचा जाता था ।इसके अलावा इस सम्बंध में पता चला कि बादशाह हलवाई और गुलाब हलवाई भी दीवाली के अवसर पर बताशा बनाकर बेचा करते थे ।इस क्रम में रवि शुक्ला बताते हैं कि दूध डेयरी के निकट छोटू जायसवाल के घर में और अनाथालय के पास जयहिंद गली में संतोष खंडेलवाल के घर में कई वर्षों तक बताशा बनाया जाता रहा है ।
बताशे का उपयोग सिर्फ पूजा पाठ के लिए किया जाता हो ऐसी बात नहीं है। गर्मी के मौसम में कोई मेहमान या जान- पहचान का कोई व्यक्ति घर पर आया करता था उसका स्वागत ठंडे पानी के साथ बताशा पेश कर के किया जाता था ।बताशा खाकर ठंडा पानी पीते ही तरावट आ जाती थी और ऊर्जा का संचार हो जाता था ।
*अनिल पाण्डेय **

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