मथुरा की तर्ज पर रायगढ़ के गौरीशंकर मन्दिर में 1951 में जन्माष्टमी मनाए जाने की हुई थी शुरुआत ,जिसे झूलोत्सव का दिया गया था नाम
रायगढ़ 24 अगस्त ।रायगढ़ झूलोत्सव के नाम से गौरीशंकर मन्दिर में जन्माष्टमी मनाए जाने की परंपरा 1951 में प्रारम्भ हुई थी ।इसके पीछे स्व सेठ किरोड़ीमल की सोच यह थी कि रायगढ़ में भी जन्माष्टमी मथुरा की तर्ज पर मनायी जाए और हुआ भी ऐसा रायगढ़ में मनायी जाने वाली जन्माष्टमी दूर -दूर तक प्रसिद्ध हो गई और इसे देखने के लिए आसपास के लोगों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग भी आने लगे और रायगढ़ में जन्माष्टमी के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ने लगी जिसने कि एक मेले का रूप धारण कर लिया ।1955 से जन्माष्टमी मेला के अवसर पर रायगढ़ में सर्कस और मीना बाजार लगने के अलावा बाहर से व्यापारी आकर मेले में अपनी दुकान सजाने लगे ।रायगढ़ में जन्माष्टमी मेले के दौरान बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को लाने लेजाने के लिए रेलवे द्वारा जहां स्पेशल ट्रेन चलाई जाती थी तो राज्य परिवहन निगम भी अतिरिक्त बसें मेला स्पेशल के रूप चलाया जाता था ।इस दौरान रायगढ़ के सिनेमा घरों द्वारा धार्मिक फ़िल्म लगाई जाती थी और कई शो चलाये जाते थे ।कहा जाता है कि जन्माष्टमी मेला के दौरान रायगढ़ में कोई घर नहीं बचता था जो मेहमानों से भरा नहीं होता था ,यहां तक कि अनजान लोग भी घरों के बाहर की परछी में अनजान लोग भी डेरा जमा लिया करते थे और उनका भी पूरा ध्यान घर के लोग रखा करते थे ।जन्माष्टमी मेले के दौरान रायगढ़ में जगह -जगह भोजन ,पानी ,नाश्ते की व्यवस्था रायगढ़ की सेवाभावी संस्थाए किया करती थी और अब भी किया करती हैं ।रायगढ़ के लोगों द्वारा सेवा और सत्कार करना रायगढ़ की वर्षों पुरानी संस्कृति की है।प्रसिद्धि ख्याति की चरम सीमा पर पहुंचने के बाद रायगढ़ का जन्माष्टमी मेला ट्रस्ट की उपेक्षा , गौरीशंकर मन्दिर के अंदर धार्मिक कथाओं पर आधारित झांकियों के पुरानी पड़ जाने ,समय के साथ परिवर्तन ना किये जाने के चलते रायगढ़ का जन्माष्टमी मेला अपनी चमक -दमक धीरे -धीरे खोने लगा और एक सप्ताह तक चलने वाला यह मेला एक दो दिनों तक सिमटने लगा ।ऐसे दौर में जब रायगढ़ का जन्माष्टमी मेला अपनी प्रसिद्धि और वैभव की ढलान में था तब उस दौर में 26 वर्ष पहले रायगढ़ के श्री श्याम मण्डल ने श्री श्याम मन्दिर के तत्वाधान में जन्माष्टमी मनाने का निर्णय कर जन्माष्टमी मनाना आरम्भ कर दिया गया और श्री श्यामण्डल द्वारा मनाई जाने वाली जन्माष्टमी ने रायगढ़ में मनाई जानी वाली जन्माष्टमी को एक नयी पहचान दी और श्री श्याम मण्डल द्वारा मनाई जाने वाली जन्माष्टमी भी रायगढ़ में प्रसिद्ध हो गयी।