रायगढ़

रायगढ़ का औघौगिक विकास और गहराता पर्यावरण संकट: हर्ष सिंह

रायगढ़ । अमीर धरती के गरीब लोगों को अपने में समेटे रायगढ़ जिले का इतिहास पांच सौ वर्ष पुराना है। इतिहास बताता है कि इसकी स्थापना लगभग 1625 के आसपास गोंड राजा मदन सिंह ने की। रायगढ़ रियासत गोंड राजवंशों द्वारा शासित था।और इसने आगे भी महान राजाओ को राज्य का अधिकार दिया,इसका एक उदाहरण देखिए भारत सरकार में शामिल होने वाला सबसे पहली रियासत रायगढ़ रियासत थी। बाद में यह एक जनवरी 1948 ईस्टर्न स्टेटस एजेंसी के पूर्व पांच रियासतों क्रमश रायगढ़, सारंगढ़ जशपुर, उदयपुर और सक्ती को मिला कर रायगढ़ जिले का गठन किया गया जो बाद में जनता की मांगों और राजनीतिक लाभ के दृष्टि से विभिन्न जिलों में बंटता गया। वर्तमान में सारंगढ़, जशपुर,, सक्ती अलग-अलग जिले बन चुके हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित रायगढ़ छत्तीसगढ़ बनने के बाद छत्तीसगढ़ में आ गया और तब देश के हुक्मरानों ने वायदा किया था कि राज्य छोटे होंगे तो विकास की गति तेज होगी और इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ ,झारखंड ,और उत्तराखंड बना दिए गए।अब यही रायगढ़ छत्तीसगढ़ के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य की सीमा से लगा हुआ एक जनजाति बहुल जिला है। दक्षिण पूर्वी रेल लाइन पर बिलासपुर संभाग से 133 किमी और राजधानी रायपुर से लगभग २५० किमी दूर यह जिला अपने। प्राकृतिक संसाधनों के कारण देश विदेश के कारपोरेट , कारोबारियों ,भू माफियाओं को लुभा रहा है ,और यह लोभ यहा के निवासियों के लिए संकट बनता जा रहा है।कभी यहां उघोग और व्यापार धीमी गति से पर पर्यावरणीय संतुलन बना कर हो रहे थे।तब प्रदेश का एक मात्र जूट मिल था। वनोपज का व्यापार था,। तेंदुपत्ता, बांस, महुआ गोद ,जंगली लकड़ी का काम कारोबार होता। प्राकृतिक संसाधनों पर बड़ा हस्तक्षेप नहीं था।केलो,मांड ,महानदी,ईब साफ पानी लेकर बहती,नालों के पानी निस्तार के काम आते,गरीब आदिवासी अपने जंगलों के मालिक थे,, जरूरत के हिसाब से चार ,महुआ , गोंद लकड़ी , बांस बल्ली इकट्ठा करते , बेचते और गुजारा करते। पुराने हालात का यदि बहुत आदर्शीकरण न करें तो भी कहा जा सकता है कि गरीबी , बीमारी, बेबसी तो थी पर हाथ पर हाथ धरे किंकर्तव्यविमूढ़ विमूढ़ता नहीं थी।लगभग तीस साल पहले जिले में लगने वाले स्टील कारखानों, कोयलें की खुदाई , जमीनों की छीना झपटी और बिना किसी योजना के बड़ी संख्या में बाहरी लोगों के आगमन ने जिले के पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ दिया।जिन कल-कल बहते नदी नालों में नहाने से त्वचा दमकती रहती थी वो खाज खुजली की शिकार हो गई।चंद सिक्कों के साथ लोगों को थमाई, सांस की बीमारी , ह्रदय रोग और मानसिक तनाव दिया। भारी-भरकम पर्यावरण विभाग पर भ्रष्टाचार की मक्खियों ने डेरा जमा लिया। जनसुनवाई के नाम पर छुटभैये अपना खुद का विस्तार करते रहे। मीडिया उनकी दास बन गई। साधारण आदमी घुटने टेक दिया।ऐसा लगता है खांसते हुए मरना उसने अपनी नियति समझ ली ,उसे अब भरोसा नहीं रहा और भरोसा टूट जाना ही सबसे दुखद होता है।यही सबसे बड़ी विडंबना है किससे उम्मीद की जाए फिर भी जनता उम्मीद लगाए हुए है कोई तो ऐसा आएगा जो उसके कष्टों ,संकटो ,दुखों को दूर करेगा औऱ रायगढ़ जोकि प्रदूषण गढ़ बन चुका है उसे प्रदूषण से मुक्ति दिलाकर फिर से रायगढ़ बनाएगा ।

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