रायगढ़

*केलो है तो कल है *

रायगढ़ । केलो रायगढ़ की जीवन -रेखा है।केलो रायगढ़ की जीवन दायिनी है।केलो रायगढ़ की धरोहर है ।केलो रायगढ़ की विरासत है ।केलो रायगढ़ की संस्कृति है ।केलो रायगढ़ का स्पंदन है।केलो की बहती धारा से संगीत की स्वर लहरियां गूंजती है जिसमें तबले की थाप और मांदर का नाद सुनाई देता है ।जब हम केलो की बात करते हैं तो इस सबसे बढ़कर केलो हमारे लिए माता का दर्जा रखती है ।तभी तो हम केलो नदी को केलो मैय्या कहते हैं ।जिस प्रकार से एक माँ अपने बच्चे को अपना दूध पिलाकर उसे बड़ा करती है ,ठीक उसी तरह से केलो ने अपना पानी पिलाकर रायगढ़िया लोगों का वर्षों से लालन -पालन करते आ रही है ।केलो का हमारे ऊपर जो ऋण है उससे हम आजीवन उऋण नहीं हो सकते हैं ।केलो का हमारी सांसों के ऊपर जो कर्ज है उसे कभी भी चुकाया नहीं जा सकता है।


इसी केलो में हम कार्तिक के महीने में कार्तिक स्नान के लिए डुबकी लगाते हैं और दीपदान भी किया करते हैं ।इसी केलो में हम स्नान करने के बाद अंजुली में जल भरकर सूर्य देवता को समर्पित करके सूर्योपासना किया करते हैं तो ,जल लेकर शिवालय में जाकर उसे शिवलिंग के ऊपर अर्पित कर उनका अभिषेक भी करते हैं। मकर संक्रांति को हम सब इकठ्ठे होकर केलो की आरती करने जाते हैं तो छठव्रती महिलाएं केलो के जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करती हैं


केलो मोक्षदायिनी भी है ,केलो के तट पर अंतिम संस्कार भी होता है ।प्रयागराज के संगम में अस्थि विसर्जन के लिए एकत्रित की गई अस्थियों के बाद जो राख बच जाती है उसका विसर्जन भी केलो में होता है जिसे केलो अपने साथ महानदी तक लेकर जाती है और महानदी उसे अपने साथ समुद्र तक लेकर जाती है ।समुद्र में तो सभी नदियों का संगम होता है
मानव सभ्यता का विकास नदियों के तट पर ही हुआ क्योंकि नदियों से ही उसे पीने का पानी मिला ,खेतों की सिंचाई के लिए भी पानी मिला ,नदियों द्वारा बाढ़ में बहाकर लाई मिट्टी से उपजाऊ खेत मिले ,पशुओं को भी चारा और पानी मिला ।
सदानीरा रायगढ़ की प्राणदायिनी नदी केलो महतारी की अविरल ,कलकल करती हुई जलधारा आदिकाल से बहती आ रही है ।इसी के तट पर रायगढ़ बसा और पला तथा बढ़ा ।केलो की जलधारा को चिरकाल तक प्रवाहित होते रहने के लिए ,केलो के तट वासियों को अपने अमृत रूपी जल से जीवन देते रहने के लिए ,प्यासे खेतों की प्यास बुझाते रहने के लिए ,तथा केलो के जल के जीवन पाने वाले जलचरों के पनपने के लिए ,भूमिगत जल भंडार में वृद्धि होते रहने के लिए केलो है तो कल है के ध्येय वाक्य के साथ केलो के उद्गम स्रोत से महानदी में संगम तक केलो के सरंक्षण और संवर्धन का बीड़ा उठाने का भागीरथी प्रयास करना होगा तभी हमारी केलो मैय्या अनन्त काल तक कल कल करती हुई सदानीरा बनकर बहती रहेगी और प्यासे कंठो और खेतों की प्यास बुझाती रहेगी।

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