तिल लाड़ू ,मुर्रा लाड़ू ,करी लाड़ू ,पतंगबाजी और मकर संक्रांति
मकर संक्रांति आ रही है।जिसके साथ ही कुछ पुरानी यादें ताजा हो रही है ।मकर संक्रांति आने से दो चार दिन पहले ही इस अवसर पर बनने वाली मिठाईयां बनाने की तैयारी शुरू हो जाती थी ।तिल को धोकर सुखा दिया जाता ,जिसकी गुड़ या चीनी के साथ लड्डू ,बर्फी बनाई जाती थी ,मुर्रा का सेव का गुड़ के पाग से लड्डू बनाया जाता था ।खोवा में भी तिल डालकर बर्फी बना करती थी ।बच्चों को भी मकर संक्रांति के दिन का बेसब्री से इंतजार रहा करता था और इस अवसर पर बनी मिठाईयां संक्रांति के दिन उन्हें नहाने के बाद ही खाने को मिला करती थी ।
अब तो बाजार में भी सबकुछ रेडीमेड मिलता है ।उनकी दुकानें भी सज जाती हैं ।लेकिन यह बात पूरे सोलह आने सच है कि जो मजा और स्वाद घर में बनी इन मिठाइयों से आता था वो स्वाद बाजार में मिलने वाली इन मिठाइयों में नहीं आता है ।
मकर संक्रांति के अवसर पर पूर्वी उत्तरप्रदेश ,गुजरात और देश के कुछ अन्य भागों में पतंग उड़ाने की परंपरा है आसमान में अनगिनत पतंग उड़ती हुई दिखाई देती है ।हमारे शहर रायगढ़ में भी पिछले कुछ वर्षों से पतंगबाजी के उत्सव का आयोजन होता आ रहा है ।रायगढ़ में जब भी पतंग और पतंगबाजी की बात चलती है तो रायगढ़ के मशहूर पतंगबाज बुद्धू की याद जरूर आ जाती है ।उनका असली नाम तो कुछ और था लेकिन वे बुद्धू के नाम से ही जाने पहचाने जाते थे।