रायगढ़

राष्ट्र हित के लिए समर्पित संत पूज्य अघोरेश्वर,मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा अघोरेश्वर का जीवन,महानिर्वाण दिवस पर विशेष

रायगढ़ :- भगवान राम का जीवन राष्ट्र निर्माण एवं मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। मानव सेवा की मिशाल रखने वाले पूज्य अघोरेश्वर के जीवन आदर्श समाज के लिए आज पद चिन्ह बनकर पथ प्रदर्शक साबित हो रहे है l मनुष्य जीवन पर परेशानियों की गठरी अपने सिर उठाकर चलता है और इससे निजात पाने के तरीके खोजता है पूज्य अघोरेश्वर ने मनुष्य को नाना प्रकार की उलझनों के चक्रव्यूह से बचने का सजह तरीका बताया। अघोरेश्वर ने बाहर शांति की तलाश करने वाले मनुष्यों को बताया कि शांति आत्म अनुभूति है इसे सदैव महसूस किया जा सकता है लेकिन इसे तलाशा नहीं जा सकता। शांति की तलाश में मनुष्य नई समस्याओं से घिर जाता है। पूज्य अघोरेश्वर के शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम के कर कमलों से स्थापित अघोर गुरुपीठ बनोरा अघोरेश्वर महाप्रभु के आत्म अनुभूति का पावन स्थल है। बनोरा ऐसी पावन स्थली बन गई जहाँ पूज्य अघोरश्वर के वचनों की अमृत धारा प्रवाहित हो रही है जिसका अमृतपान कर मनुष्य स्वयं के जीवन को धन्य कर रहे है l अघोरेश्वर महाप्रभु ने मानव समाज को जीवन का व्यवहारिक मार्ग बताते हुए कहा कि जीवन के लिए धन संपदा एवं साधन नश्वर है लेकिन मनुष्य के विचार अमर है। जहां मनुष्य की उपस्थिति नहीं होती वहां उसके गुण या विचार उसका प्रतिनिधित्व करते है। पूज्य अघोरेश्वर का मानना था कि हर मनुष्य परिवार की इकाई है और परिवार समाज की इकाई और समाज राष्ट्र की इकाई है इसलिए एक एक व्यक्ति के विचार एवं कार्य राष्ट्र के लिए महत्पूर्ण होते है। देश ऐसे महान संत के योगदान को कभी विस्मृत नही कर सकता l आज के ही दिन इस नश्वर संसार से विदा लेने वाले अघोरेश्वर सशरीर भले ही हमारे मध्य न हो लेकिन वैचारिक रूप से उनके सिद्धांत हर अघोरपंथी के हृदय में मौजूद है। आशक्ति से परे आत्मा जन्म मृत्यु में बंधन से भी परे होती है। अलग अलग परिणामों के जरिए ही सफलता एवं असफलता परिभाषित होती है । किसी भी कार्य के परिणाम से मिलने वाला सुख दुख का अनुभव शरीर को होता है। यह शरीर आत्मा के लिए चोले के समान है जैसे निश्चित समय के बाद कपड़े बदलना आवश्यक हो जाता है वैसे ही एक निश्चित समय के बाद आत्मा को भी शरीर का चोला बदलना आवश्यक हो जाता है l इससे पहले यह चोला बदल जाये अगली जीवन यात्रा शुरू जो जाए मनुष्य को अपने अतीत को भुलाते हुए वर्तमान की भूमि में सद्कर्मों के बीज बोने चाहिए ताकि आने वाले भविष्य में उसका परिणाम उसके लिए अच्छा हो । लोग मानते है कि ईश्वर भाग्य का निर्माता होता है जबकि पूज्य अघोरेश्वर ने बताया मनुष्य के कर्म से ही उसका भाग्य बनता है।जन्म मृत्यु से परे रहने वाली आत्मा का अस्तित्व सदैव स्थाई होता है l नाम पद की उपाधियाँ आत्मा के लिए एक लेबल की तरह है l जो जीवन यात्रा के दौरान किसी न किसी देह में चिपकी होती है l लोभ मोह माया के बंधनों के चक्रव्यूह में फंसकर मनुष्य अपनी पहचान देह से जोड़ बैठते है l यही दुख का कारण है l शरीर की पहचान नाम के जरिए हो सकती है।लेकिन आत्मा नाम के जरिये पहचान की मोहताज नही होती। समाज में एक दूसरे का परिचय रिश्ते नाते के बंधनों की बजाय यदि आत्म स्वरूप के जरिये हो तो बहुत सी परेशानिया स्वतः ही समाप्त हो सकती है। आत्मा सतो गुणी होती है। प्रेम प्यार ज्ञान भक्ति विश्वास क्षमा बुद्धि हर आत्मा का मूल संस्कार है। पावन आत्मा जैसे ही शरीर के संपर्क में आते है अपने मूल संस्कारो को भूलकर शरीर रूप में अभिमानी हो जाती है। मनुष्य शरीर को अवधुत भगवान राम ईश्वर प्रदत आशीर्वाद मानते रहे। संसार मे भोग और विलास की असुरी शक्तियां मानव को महामानव बनने से रोकती है। इसके बावजूद अघोरेश्वर ने समाज को जीने का सरल तरीका बताया। अघोरेश्वर का जीवन दर्शन आधुनिक समाज के लिए पथ प्रदर्शक बना। धन अर्जित करने वाली आत्मये अजेय अमर नही हो सकती है। सद्कर्मो के जरिये आत्मा का नाम युगों युगों तक अमर हो सकता है। राम रावण के जीवन का उदाहरण देते हुए बताया कि समाज आज भी प्रभु राम के उच्च आदर्शो की वजह से उनका अनुकरण करता है। जबकि रावण दहन कर आज भी प्रतीकात्मक रूप से अभिमान का दहन करता है। भगवान अवधूत ने बताया कि आत्मा शक्ति का प्रभाव हर मनुष्य सीधे तौर अपने जीवन में भी आसानी से देख सकता है। बशर्ते लोग मोह माया, क्रोध वैमनस्यता के सांसारिक बंधनो से मुक्त होते ही आत्म शक्ति का प्रभाव जीवन में आसानी से देखा जा सकता है। मंदिरो में भगवान को खोजने की व्यवस्था को परंपरावादी बताते हुए अघोरेश्वर का मानना रहा सुख दुख केवल मन की अवस्था है। आत्मा स्वरूप व्यक्तित्व को इसका बोध नहीं होता। अज्ञानतावश भगवान को हम आकृति के रूप में मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में खोजकर जीवन का अधिकांश समय व्यर्थ में गवा देते है। जबकि परमात्मा एक है। वह रंग, रूप, जाति, आकृति से परे है। धर्म के नाम पर समाज का बटवारा हो रहा है। भाईचारा खंडित हो रहा है। अमीर गरीब के मध्य खाई बढ़ रही है। अघोर पंथ का लाभ समाज में वितरित करने उन्होने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जो देश के विभिन्न् हिस्सो में रहने वाले लोगो को एक नई दिशा उपलब्ध करा रहा है। अघोर पंथ व समाज के मध्य वे ऐसे सेतु बने जिसका लाभ आज भी मानव जाति को हासिल हो रहा है। जीवन के आदर्शो के जरिये मानव जाति की लक्ष्य तक पहुचाने वाले संत भगवान अवधुत राम का जीवन मानव कल्याण हेतु समर्पित रहा है। अघोरेश्वर महाप्रभु का जीवन अद्धुत एवं विविधताओं से भरा हुआ रहा। 25 वर्ष की अपार साधनाओ की चरम उपलब्धियों से परिपूर्ण सिद्धियों और शक्तियो की साधना के जरिये अघोरेश्वर ने 27 सितंबर 1961 में ही सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की और समाज के लिये उपेक्षित, तिरस्कृत समझे जाने वाले कुष्ठ रोगियो को अपार स्नेह के साथ प्रेम पूर्वक गले लगाया। वाराणसी के पड़ाव में भगवान राम कुष्ठ सेवाश्रम कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिये ऐसी पवित्र पावन गंगा बन गई जिसमें डूबकी लगाकर कुष्ठरोगी अपना रोग आसानी से मिटा सकते थे। आज सर्वेश्वरी समूह की अनेक शाखएं कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगी है। जिनमे पड़ाव के रायबरेली का प्रमुख स्थान है।

अघोरेश्वर भगवान राम के अनमोल वचन
साधना के ज़रिए मनुष्य को अपनी संपूर्णता से जुड़ना चाहिए। निःस्वार्थ सेवा के जरिए पूर्णता की प्राप्ति सहजता से की जा सकती है। हर मनुष्य को समाज और राष्ट्र की सेवा करना चाहिए.

पूज्य अघोरेश्वर के जीवन से जुड़े प्रसंग

दुनिया भर में भ्रमण करने वाले अघोरेश्वर से जुड़े शिष्य देश भर में आश्रमों का निर्माण कर उनके विचारों को जन जन तक पहुंचाने का काम कर रहे है। अघोरेश्वर भगवान राम ने 1992 में समाधि ली थी।वाराणसी में उनकी समाधि का नाम “महाविभूति” स्थल है।अघोरेश्वर भगवान राम के अनुयायियों की संख्या बहुत ज़्यादा है।उनके अनुयायी समाज के हर वर्ग के लोग हैं.
अघोरेश्वर भगवान राम के अनुयायियों में जनसाधारण और गृहस्थ शिष्य, मुड़िया साधु जैसे लोग हैं.
गणेश अग्रवाल, वरिष्ठ पत्रकार

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