रायगढ़

बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो जाए,अंततः जलना ही पड़ता है : बाबा प्रियदर्शीराम

रायगढ़ ।बुराई कितनी भी शक्ति शाली हो जाए अंततः उसे जलना हीं पड़ता है। उक्त संदेश अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा के संस्थापक पूज्य पाद प्रियदर्शी राम ने होली पर्व पर दिया। उन्होंने कहा होली खेलने के पहले होलिका दहन इस बात का संदेश है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो जाए लेकिन अंत में उसे ही जलना पड़ता है। भक्त प्रहलाद की भक्ति को मिटाने के उद्देश्य के अंतिम प्रयास में हिरण कश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को जलाने की योजना बनाई क्योंकि बहन होलीका का यह वरदान हासिल था कि अग्नि भी होलिका को नहीं जला सकती। होलिका प्रहलाद को जलाने के उद्देश्य से लड़कियों के मध्य प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई ।ईश्वर हरि ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए जलाई गई अग्नि से होलिका को ही दहन कर दिया। भक्त प्रहलाद हरि कृपा से बच गए । मानव समाज के लिए इस प्रसंग को प्रेरणादाई बताते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा ईश्वर से मिले वरदान का दुरुपयोग ही होलिका के नष्ट होने का कारण बना। होली आने वाले दिनों में नव वर्ष के आगमन का संदेश देता है ।आश्रम परिसर के समीप ही परम्परा गर तरीके से होलिका दहन किया गया। होली के दिन प्रातः से ही शहर वासी गुरु चरणों में गुलाल अर्पित करने जुटने लगे। अघोर परम्परा से जुड़े अनुयाई बनोरा आश्रम में गुरू चरणों में गुलाल अर्पित कर शीश नवाने के बाद ही होली खेलने की शुरूवात करते हैं । शुक्रवार की सुबह से ही सभी राजनीतिक दलों से जुड़े नेता, पार्षद, समाजसेवी व्यापारिक धार्मिक संस्थाओं से जुड़े पदाधिकारी मीडिया से जुड़ी हस्तियों सहित गणमान्य लोग कतार बध्द हो धैर्य पूर्वक अपनी अपनी पारी की प्रतीक्षा करते देखे गए। आश्रम के प्रवेश द्वार में ही भजन मंडली उत्साह से फाग गीत गा रही थी। आश्रम परिसर में वृक्ष के नीचे बाबा प्रियदर्शी ने कतार बद्ध अनुयाइयों से गुलाल स्वीकार करते हुए सभी पर आशीर्वाद स्वरूप रंग डाल रहे थे। होली में दिए गए संदेश में पूज्य पाद बाबा प्रियदर्शी राम जी ने कहा अपने अंदर मौजूद नकारात्मक विचारों को दूर करते हुए किसी के प्रति भी दुश्मनी का भाव नहीं रखे । मन मंदिर में स्थापित आत्मा को परमात्मा का अंश बताते हुए कहा हृदय के मंदिर में भी स्थापित आत्मा रूपी ईश्वर को हर पल प्रेम का पुष्प अर्पित करते रहे। जाति धर्म के बंधन से ऊपर उठते हुए आपसी प्रेम भाईचारे को राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक बताया। साथ ही नशे की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा युवा वर्ग नशे के दुष्चक्र में फंसता जा रहा है। नशे की वजह से समाज खोखला हो रहा है। नशा मुक्त समाज ही राष्ट्र निर्माण के अपनी भूमिका निभा सकता है। प्रेम दया करुणा सहिष्णुता क्षमा सदभाव जैसे दैवीय गुणों को आत्मसात करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पूज्य पाद प्रियदर्शी राम जी ने कहा दैवीय गुणों एवं संस्कारों को आत्मसात करने से मनुष्य को देवत्व का बोध हो सकता है। इस स्थिति में मनुष्य पूजा पाठ के आडंबर से बच सकता है। संस्कार वान मनुष्य तनाव मुक्त होकर जीवन में सुख शांति समृद्धि हासिल कर लेता है। तनाव मुक्त जीवन से दीर्घायु हासिल होती है। सादगी पूर्ण एवं व्यवहारिक जीवन शैली अपनाने वाले मनुष्य का जीवन समाज के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणादाई बन जाता है। किसी दूसरे का हमारे साथ कैसा व्यवहार करता है इसे देखने समझने की वजह हमें अच्छा व्यवहार करने में ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि हमारी सोच से हमारा जीवन बनता है।सनातन धर्म में नव वर्ष की शुरुवात ध्यान धारणा पूजा पाठ शक्ति की उपासना के साथ नशे के परित्याग के संकल्प से की जाती है वही पश्चिमी सभ्यता में नव वर्ष की शुरुआत धूम धड़ाके नाच गाने एवं नशे के सेवन के साथ होती है । पूज्य बाबा ने पश्चिमी जीवन शैली से बचने की सलाह देते हुए कहा जीवन में दुखों का कारण हम स्वयं है इसका निदान बाहर खोजने की बजाय अंदर ही तलाशा जाना चाहिए।

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